Shri Hari Stotram (श्री हरि स्‍तोत्रम्) | Shri Vishnu Stotram | With Hindi-English Lyrics & meaning

 

श्री हरि स्तोत्र क्या है?

श्री हरि स्‍तोत्र की रचना श्री आचार्य ब्रह्मानन्द के द्वारा की गई है और यह जगत के पालनहार भगवान श्री हरि विष्णु को समर्पित किया गया है । इस स्तोत्र को भगवान श्री हरि  विष्णु की उपासना के लिए सबसे शक्तिशाली मंत्र कहा गया है। श्री हरि स्तोत्र के नियमित पाठ करने से भगवान विष्णु के साथ माता लक्ष्मी का भी आशीर्वाद मिल जाता है।

श्री हरि स्तोत्र पाठ की विधि:

श्री हरी स्तोत्र (Shri Hari Stotram) को पाठ करने से पहले कुछ विशेष बातों को  अवश्य ध्यान में रखना चाहिए।

  • सबसे पहले तो सुबह उठकर नित्य क्रिया के बाद स्नान कर लें। उसके बाद ही पाठ करें।
  • प्रति दिन श्री गणेश का नाम ले कर ही यह पाठ/पूजा शुरू करें।
  • पाठ/पूजा को शुरू करने के बाद बीच में उठाना या रुकना फलदाई नहीं माना जाता।
श्री हरि स्तोत्र से प्रमुख लाभ (Benefits of Shri Hari Stotram)
  • श्री हरि स्तोत्र के नियमित जाप से भगवान विष्णु का विशेष आशीर्वाद मिलता है।
  • श्री हरी स्तोत्र के नियमित पाठ करने से बुरी आदतों और गलत संगत आदि से छुटकारा मिल जाता है।
  • श्री हरि स्तोत्र का जाप करने से मनुष्य को तनाव से मुक्ति मिलती है।
  • श्री हरी स्तोत्र के पाठ से जीवन में आगे बढ़ने की विशेष शक्ति मिलती है।
  • सच्ची श्रद्धा से यह पाठ करने से व्यक्ति को वैकुण्ठ लोक की प्राप्ती होती है।
  • श्री हरि स्तोत्र का जाप करने से व्यक्ति सुख दुख, शोक, जन्म-मरण के बंधन आदि के बंधनों को आसानी से समझ लेता है और उनसे मुक्त हो जाता है।
श्री हरि स्तोत्रम् (Shri Hari Stotram)

जगज्जालपालं कचत्कण्ठमालं, शरच्चन्द्रभालं महादैत्यकालम् ।
नभोनीलकायं दुरावारमायं, सुपद्मासहायं भजेऽहं भजेऽहम् ॥ १॥

Jagaj-Jaal-Paalam Kachat-Kanth-Maalam,
Sharach-Chandra-Bhaalam Mahadaitya-Kaalam,
Nabho-Neel-Kaayam Duravaar-Maayam,
Su-Padma-Sahaayam Bhaje’ham Bhaje’ham. ||1||

अर्थ: जो समस्त जगत के रक्षक हैं, जो गले में चमकदार माला पहनते हैं, जिनका मस्तक शरद ऋतु में चमकते चन्द्रमा के समान है और जो महादैत्यों के काल हैं। जिनकी काया नीले आकाश के समान है, जो अजेय मायावी शक्तियों के स्वामी हैं, जो देवी लक्ष्मी के साथी हैं, उन भगवान विष्णु को मैं बारंबार भजता/ती हूँ।

Meaning: I worship such Lord Hari again and again, Who is the protector of the world, Who wears a shining garland in his neck, Who has a forehead like the moon of autumn, Who is death to demons and monsters. 

 

सदाम्भोधिवासं गलत्पुष्पहासं, जगत्सन्निवासं शतादित्यभासम् ।
गदाचक्रशस्त्रं लसत्पीतवस्त्रं, हसच्चारुवक्त्रं भजेऽहं भजेऽहम् ॥ २॥

Sadaam-Bhodhi-Vaasam Galat-Pushp-Haasam,
Jagat-Sanni-Vaasam Shataa-Ditya-Bhaasam,
Gadaa-Chakra-Shastram Lasat-Peet-Vastram,
Hasach-Chaaru- Vaktram Bhajeham Bhajeham. ||2||

अर्थ:  जो सदा समुद्र में वास करते हैं, जिनकी मुस्कान खिले हुए पुष्प की भांति है, जिनका वास पूरे जगत में है, जो सौ सूर्यों के समान प्रतीत होते हैं। जो शस्‍त्र के रूप में गदा और चक्र धारण करते हैं, जो पीले वस्त्र धारण करते हैं , जिनके सुंदर चेहरे पर प्यारी मुस्कान है, मैं उन भगवान विष्णु को मैं बारंबार भजता/ती हूँ।

Meaning: I worship such Lord Hari again and again, Who is always lives in the Sea, Who  has a smile like a flower, Who lives everywhere in the world, Who has the radiance of hundred suns, is death to demons and monsters. 

रमाकण्ठहारं श्रुतिव्रातसारं, जलान्तर्विहारं धराभारहारम् ।
चिदानन्दरूपं मनोज्ञस्वरूपं, धृतानेकरूपं भजेऽहं भजेऽहम् ॥ ३॥

अर्थ: जिनके गले के हार में देवी लक्ष्मी का चिन्ह बना हुआ है, जो वेद वाणी के सार हैं, जो जल में विहार करते हैं और पृथ्वी के भार को धारण करते हैं। जिनका सदा आनंदमय रूप रहता है और मन को आकर्षित करता है, जिन्होंने अनेकों रूप धारण किये हैं, उन भगवान विष्णु को मैं बारम्बार भजता हूँ।

Ramaa-Kanth-Haaram Shruti-Vaat-Saaram,
Jalaantar-Vihaaram Dharaa-Bhaar-Haaram,
Chidaa-Nand-Roopam Manogya-Swaroopam,
Dhrataanek-Roopam Bhajeham Bhajeham. ||3||

जराजन्महीनं परानन्दपीनं, समाधानलीनं सदैवानवीनम् ।
जगज्जन्महेतुं सुरानीककेतुं, त्रिलोकैकसेतुं भजेऽहं भजेऽहम् ॥ ४॥

Jara-Janma-Heenam Para-Nand-Peenam,
Samaadhaan-Leenam Sadaiv-Naveenam,
Jagaj-Janma-Hetum Suraaneek-Ketum,
Trilokaik-Setum Bhajeham Bhajeham. ||4||

अर्थ:  जो जन्म और मृत्यु से मुक्त हैं, जो परमानन्द से भरे हुए हैं, जिनका मन हमेशा स्थिर और शांत रहता है, जो हमेशा नूतन प्रतीत होते हैं। जो इस जगत के जन्म के कारक हैं। जो देवताओं की सेना के रक्षक हैं और जो तीनों लोकों के बीच सेतु हैं। उन भगवान विष्णु को मैं बारंबार भजता हूँ।

कृताम्नायगानं खगाधीशयानं, विमुक्तेर्निदानं हरारातिमानम् ।
स्वभक्तानुकूलं जगद्वृक्षमूलं, निरस्तार्तशूलं भजेऽहं भजेऽहम् ॥ ५॥

Krataam-Naay-Gaanam Khagaa-Dheesh-Yaanam,
Vimukter-Nidaanam Haraa-Raati-Maanam,
Swa-Bhaktaanukoolam Jagad-Vraksha-Moolam,
Nirastaart-Shoolam Bhajeham Bhajeham. ||5||

अर्थ:  जो वेदों के गायक हैं। पक्षीराज गरुड़ की जो सवारी करते हैं। जो मुक्तिदाता हैं और शत्रुओं का जो मान हारते हैं। जो भक्तों के प्रिय हैं, जो जगत रूपी वृक्ष की जड़ हैं और जो सभी दुखों को निरस्त कर देते हैं। मैं उन भगवान विष्णु को बारम्बार भजता हूँ।।

समस्तामरेशं द्विरेफाभकेशं, जगद्बिम्बलेशं हृदाकाशदेशम् ।
सदा दिव्यदेहं विमुक्ताखिलेहं, सुवैकुण्ठगेहं भजेऽहं भजेऽहम् ॥ ६॥

Samastaam-Resham Dwire-Phaabh-Kesham,
Jagad-Vimb-Lesham Hridaa-Kaash-Desham,
Sadaa-Divya-Deham Vimukta-Khileham,
Su-Vaikunth-Geham Bhajeham Bhajeham. ||6||

अर्थ:  जो सभी देवताओं के स्वामी हैं, काली मधुमक्खी के समान जिनके केश का रंग है, पृथ्वी जिनके शरीर का हिस्सा है और जिनका शरीर आकाश के समान स्पष्ट है। जिनका शरीर सदा दिव्य है, जो संसार के बंधनों से मुक्त हैं, बैकुंठ जिनका निवास है, मैं उन भगवान विष्णु को बारम्बार भजता हूँ।।

सुरालिबलिष्ठं त्रिलोकीवरिष्ठं, गुरूणां गरिष्ठं स्वरूपैकनिष्ठम् ।
सदा युद्धधीरं महावीरवीरं, महाम्भोधितीरं भजेऽहं भजेऽहम् ॥ ७॥

Suraali-Balishtham Triloki-Varishtham,
Gurunaam-Garishtham Swaroopaika-Nishtham,
Sadaa-Yuddh-Dheeram Mahaveer-Veeram,
Mahaambhodhi-Teeram Bhajeham Bhajeham. ||7||

अर्थ:  जो देवताओं में सबसे बलशाली हैं, त्रिलोकों में सबसे श्रेष्ठ हैं, जिनका एक ही स्वरूप है, जो युद्ध में सदा विजय हैं, जो वीरों में वीर हैं, जो सागर के किनारे पर वास करते हैं, उन भगवान विष्णु को मैं बारंबार भजता हूँ।

रमावामभागं तलानग्रनागं, कृताधीनयागं गतारागरागम् ।
मुनीन्द्रैः सुगीतं सुरैः सम्परीतं, गुणौधैरतीतं भजेऽहं भजेऽहम् ॥ ८॥

Ramaa-Vaama-Bhaagam Tala-Nagna-Naagam,
Krata-Dheen-Yaagam Gataa-Raag-Raagam,
Muneendraih-Sugeetam Suraih-Sampareetam,
Gunau-Dhair-Teetam Bhajeham Bhajeham. ||8||

अर्थ:  जिनके बाईं ओर लक्ष्मी विराजित होती हैं। जो शेषनाग पर विराजित हैं। जो राग-रंग से मुक्त हैं। ऋषि-मुनि जिनके गीत गाते हैं। देवता जिनकी सेवा करते हैं और जो गुणों से परे हैं। मैं उन भगवान विष्णु को बारम्बार भजता हूँ।

।। फलश्रुति ॥
इदं यस्तु नित्यं समाधाय चित्तं पठेदष्टकं कण्ठहारं मुरारेः ।
स विष्णोर्विशोकं ध्रुवं याति लोकं जराजन्मशोकं पुनर्विन्दते नो ॥ ९॥

Phalashruti

Idam Yastu Nityam Samaadhaya Chittam, Pathe-Dastakam Kanth-Haram Murareh, Sa-Vishnor-Vishokam Dhruvam Yaati Lokam Jaraa-Janma-Shokam
Punar-Vindate No.

अर्थ:  भगवान हरि का यह अष्टक जो कि मुरारी के कंठ की माला के समान है,जो भी इसे सच्चे मन से पढ़ता है वह वैकुण्ठ लोक को प्राप्त होता है। वह दुख,शोक,जन्म-मरण के बंधन से मुक्त हो जाता है।

इति श्रीमत्परमहंस-स्वामिब्रह्मानन्द-विरचितं श्रीहरिस्तोत्रं संपूर्णम् ॥

अर्थात, यहां पर श्रीपरमहंसस्वामी ब्रह्मानन्द द्वारा रचित यह श्रीहरि स्तोत्र समाप्त हुआ।

हमारे धर्म ग्रंथों में भगवान श्री हरि की आराधना करने के लिए कुछ विशेष दिव्य मंत्र बताए गए हैं। उन्हीं कुछ विशेष दिव्य मंत्रों में से श्री हरि स्तोत्र को भगवान विष्णु की स्तुति के लिए सबसे शक्तिशाली और प्रभावी मंत्र बताया गया है। इस मन्त्र के जाप करने वालों पर विष्णु जी की विशेष कृपा बरसती है।

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