चिंता क्‍यो? Why worry ? chinta Kyon?

चिंता क्‍यों ?

  • जब हालात तुम्‍हारे नियंत्रण से बाहर हों और तुम कुछ भी नहीं करने की स्थिति में हो तो चिंता क्‍यों ?

 

कभी कभी जब हम किसी समस्‍या में उलझ जोते हैं, हम अनुभव करते है कि मानो हम अपने दिमाग में ही फंस गये हैं। उस स्थिति में हम लगातार समस्‍याओं को ही दोहराते रहते हैं, और चिंता करना शुरू करते है,  जिससे बहुत अधिक मानसिक एवं भावनात्‍मक पींड़ा उत्‍पन्‍न होती है। 

 

मैं आपको एक राजा की कहानी सुनाता हूँ –

 

प्राचीन समय की बात है। एक राज्य में एक राजा राज करता था। उसका राज्य बहुत ख़ुशहाल था। धन-धान्य की कोई कमी नहीं थी। राजा और प्रजा ख़ुशी-ख़ुशी अपना जीवन-यापन कर रहे थे।

 

 

 

एक वर्ष उस राज्य में भयंकर अकाल पड़ा। पानी की कमी से फ़सलें सूख गई। ऐसी स्थिति में किसान राजा को लगान नहीं दे पाए। लगान प्राप्त न होने के कारण राजस्व में कमी आ गई और राजकोष खाली होने लगा। यह देख राजा चिंता में पड़ गया। वह हर समय सोचता रहता कि राज्य का खर्च कैसे चलेगा?

 

कुछ दिनों बाद अकाल का समय निकल गया और स्थिति सामान्य हो गई। किंतु राजा के मन में चिंता घर कर गई। हर समय उसके दिमाग में यही रहता कि राज्य में पुनः अकाल पड़ गया, तो क्या होगा? इसके अतिरिक्त उसे अन्य चिंतायें भी घेरने लगी। पड़ोसी राज्य का भय, मंत्रियों का षड़यंत्र जैसी कई चिंताओं ने उसकी भूख-प्यास और रातों की नींद छीन ली।

 

वह अपनी इस हालत से परेशान था। किंतु जब भी वह राजमहल के माली को देखता, तो आश्चर्य में पड़ जाता। दिन भर मेहनत करने के बाद वह रूखी-सूखी रोटी भी बड़े आनंद के  साथ  खाता और पेड़ के नीचे मज़े से सोता। कई बार राजा को उससे जलन होने लगती।

 

 

 

एक दिन उसके राजदरबार में एक सिद्ध साधु पधारे। राजा ने अपनी समस्या साधु को बताई और उसे दूर करने का सुझाव मांगा।

 

साधु राजा की समस्या अच्छी तरह समझ गए थे। वे बोले, “राजन! तुम्हारी चिंता की जड़ राज-पाट है। अपना राज-पाट अपने पुत्र को देकर चिंता मुक्त हो जाओ।”

 

इस पर राजा बोला, ”मुनिवर! मेरा पुत्र मात्र पांच वर्ष का है। वह अबोध बालक राज-पाट कैसे संभालेगा?”

 

साधु बोले “तो फिर ऐसा करो कि अपनी चिंता का भार तुम मुझे सौंप दो। मतलब कुछ दिन के लिए अपना राज पाट मुझे सौंप दो” 

 

राजा तैयार हो गया और उसने अपना राज-पाट साधु को सौंप दिया। इसके बाद साधु ने पूछा, “अब तुम क्या करोगे?”

 

राजा बोला, “सोचता हूँ कि अब कोई व्यवसाय कर लूं।”

 

“लेकिन उसके लिए धन की व्यवस्था कैसे करोगे? अब तो राज-पाट मेरा है। राजकोष के धन पर भी मेरा अधिकार है।”

 

“तो मैं कोई नौकरी कर लूंगा।” राजा ने उत्तर दिया।

 

 

 

“ये ठीक है, लेकिन यदि तुम्हें नौकरी ही करनी है, तो कहीं और जाने की आवश्यकता नहीं है । यहीं नौकरी कर लो। मैं तो साधु हूँ। मैं अपनी कुटिया में ही रहूंगा। राजमहल में ही रहकर मेरी ओर से तुम ये राज-पाट संभालना।”

 

राजा ने साधु की बात मान ली और साधु की नौकरी करते हुए राजपाट संभालने लगा। साधु अपनी कुटिया में चले गए।

 

कुछ दिन बाद साधु पुनः राजमहल आये और राजा से भेंट कर पूछा, “कहो राजन! अब तुम्हें भूख लगती है या नहीं और तुम्हारी नींद का क्या हाल है?”

 

“मुनिवर! अब तो मैं खूब खाता हूँ और गहरी नींद सोता हूँ। पहले भी मैं राजपाट का कार्य करता था, अब भी करता हूँ। फिर ये परिवर्तन कैसे? ये मेरी समझ के बाहर है।” राजा ने अपनी स्थिति बताते हुए प्रश्न भी पूछ लिया।

 

साधु मुस्कुराते हुए बोले, “राजन! पहले तुमने काम को बोझ बना लिया था और उस बोझ को हर समय अपने मानसि‍क-पटल पर ढोया करते थे। किंतु राजपाट मुझे सौंपने के उपरांत तुम समस्त कार्य अपना कर्तव्य समझकर करते हो। इसलिए चिंतामुक्त हो।”

 

सीख – “जीवन में जो भी कार्य करें, अपना कर्त्तव्य समझकर करें। न कि बोझ समझकर। यही चिंता से दूर रहने का सबसे अच्‍चा तरीका है।”

 

  • ”कहते हैं चिंता कल का दुख कभी नहीं लूटती, वह ताे आज का आनंद समाप्‍त कर देती है।”

  • चिंता अक्‍सर भूतकाल में हुयी घटना या भविष्‍य में असुरक्षा को लेकर हाेती है। हम नहीं जानते कि भविष्‍य में  क्‍या घटित होगा लेकिन उसके डर से वर्तमान में परेशान एवं चिंताग्रस्‍त रहते हैं । 

  • चिंता ऐसी बीमारी है जो आपके मन की सारी खुशियों का खा जाती है ।

 

आप किसी बात के लिए सावधान रह सकते हैं, लेकिन चिंतित नहीं | सावधान रहना और चिंता करने में बहुत फर्क है| सावधान रहना मतलब जागृत होना और चिंता मतलब विचारो को गहराई से सोचते रहना। चिंता आपको भीतर से खा जाती है |

 

  

 

 

 

 

मैं आपकाे एक फलोचार्ट दिखाता हूँ

 


 

चि‍ंता रूपी इस जहर की पीड़ा से छुटकारा पाने के लिए मैं आपको कुछ कारगर उपाय बताता हूं- 

 

  • प्रथम यह है कि जीवन को बहुत ज्‍यादा गम्‍भीरता से लेना छोड़ दीजिए।

  • व्‍यर्थ की चिंता करने के बजाए सही कर्म करने पर ध्‍यान दो । हां आप चिंतन कर सकते हैं। लेकिन वाे भी सीमित दायरे में।

  • नियमित ध्‍यान करने का अभ्‍यास कीजिए। जब आप ध्यान करते हैं, आप अपने विचलित मन को एक गहरा विश्राम दे पाते हैं।

  • अपनी भावनाओं पर नियंत्रण रखिए । आप भावनाओ के स्वामी हैं नाकि आपकी भावनाएँ आपकी स्वामिनी।

  • उत्‍साह- चिंता मुक्ति का एक और सहज तरीका है।

  • निस्वार्थ सेवा आपको चिंता से मुक्त करती है।असहाय व्‍यक्तियों की मदद करने का प्रयास करिये। 

  • अपनी कुछ समस्‍यों को ईश्‍वर पर छोड्ना सीखिये । 

  • छोटी छोटी बातों को लेट गो यानि इग्‍नोर करना सीखें।

  •  भविष्‍य के बारे में कि कल क्‍या होगा, ऐसा सोच सोच कर अपना आज खराब करना छोड़ दें। 

  • अपने जीवन में आध्‍यात्मिकता को जगह दो क्‍योंकि अध्‍यात्‍म, जीवन को बहुत नजदीक से समझने में सहायक सिद्ध होता है जिससे  हम परवाह और चिंता में अंतर समझ सकते हैं । अध्‍यात्‍म हमें वो अन्‍तर्दृष्टि प्रदान करता है जो हमारी समस्‍याओं के मूल को भलि भांति समझने में न केवल सहायक होती है बल्कि हमारे आत्‍मबल का बढाकर हमें समस्‍यों से मजबूती से निपटने की शक्ति भी प्रदान करती है।

 

चिंता ऐसे है मानो जैसे कोई वाहन चालक अपनी सवारियों की चिंता करे और उन्‍हीं के बारे में सोचता रहे कि वे सभी कितने अच्‍छे हैं, मुझे इन्‍हेंं इनकी मजिल पर सकुशल पहुँचाना है, ये सब मुझ पर निर्भर हैं इत्‍यादि और ये सब चिंता करते समय अपनी दृष्टि आगे रास्‍ते पर रखने की बजाय अपनी सवारियों को ही देखना शुरू कर दे। 

  क्‍या लगता है ? ऐसा चालक अपनी सवारियों को सकुशल उनकी मजिल पर पहुँचा पाएगा, सवारियों की तो छोड़ो, क्‍या वाे स्‍वयं सकुशल अपने गन्‍तव्‍य तक पहुँच पाएगा ?

 

अब आप समझ सकते हैं कि जब आप किसी की चिंता करते है तो हम अपने सही कर्तव्‍य से विमुख हो जाते  हैं और जिसकी चिंता करते हैं उसका भला करने की बजाय उसका बुरा कर बैठते हैं । इसीलिए चिंता नहीं सहीं कर्म करना आवश्‍यक है और ये सही कर्म करने की समझ आपको अध्‍यात्‍म से ही  सकती है  क्‍योंकि अध्‍यात्मिक ज्ञान आपको न केवल चिंतामुक्‍त करता है बल्कि जीवन के प्रति गहरी समझ का भी विकास करता है। आध्‍यात्मिक प्रक्रिया हमें समस्‍याओं के मानसिक चक्रव्‍यूह से निकालने में सहायता करती है और बड़ी से बड़ी परेशानियों को भी अवसरों में परि‍वर्तित कर देती है।

 

इसी लिए जीवन में अध्‍यात्‍म को अपनाएं और अपने धर्मग्रन्‍थों जैसे भगवत गीता, उपनिषद इत्‍यादि में दिये गये दिव्‍य ज्ञान को अपने जीवन में धारण करें । खुशहाल जीवन के लिए अध्‍यात्‍म परम आवश्‍यक है।

 

इसी के साथ आप सभी श्रेष्‍ठजनों को नमस्‍कार ! 

 

Leave a Comment

Your email address will not be published. Required fields are marked *

error: Content is protected !!
Scroll to Top